रसीली विटिका
* रसीली विटिका * सुगंधित इलाइची के दाने , कपूर चूर्ण के शीतलता संग आरम्भ होते होते , पत्तों में छिपी अनुराग की लालिमा .. अहा ... उसमे केसर के रंग .. गुलकंद के मिठास ... श्रीफल के रस .... किसमिस की लचक ... मधु की चसक ... सखी की सेवा कभी गुलाब जल या फिर केवड़ा जल छिड़क देती है ... समेट लेती सब श्रिंगारों को और बांध देती है लौंग की सुगंध में ... चंदन की बिंदी लगा कर सजा देती है।। यह प्रस्तुति भी बड़ी रसीली है .. हर एक श्रिंगार से वार्ता कर कर , रस भीगे युगल के रुचि बताते हैं .... लो अब नूपुर बाँध ... और नृत्य भर लो ... करकँज से श्रीमुख तक ..... लास्यमयी चरवन .... न न कर्षण .. मर्दन ... आलिंगन . अहा ... सुरती क्रीड़ा में निमग्न ... कभी गौर त कभी श्यामल रसरंगमंच में नृत्य करती , पिघलती ... फिसलती ... परिमालित अरुणिम रस वर्षण ... सखी री ... युगल भर रहे हैं करकमल में यह प्रवाही सुरीली सुरती तरल रंग को ... हो हो होरी ... होरी की रसिया अब यह पंक भर लिए हैं