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Showing posts from April, 2020

रसीली विटिका

* रसीली विटिका * सुगंधित इलाइची के दाने , कपूर चूर्ण के शीतलता संग आरम्भ होते होते , पत्तों में छिपी अनुराग की लालिमा .. अहा ... उसमे केसर के रंग .. गुलकंद के मिठास ... श्रीफल के रस .... किसमिस की लचक ... मधु की चसक ... सखी की सेवा कभी गुलाब जल या फिर केवड़ा जल छिड़क देती है ... समेट लेती सब श्रिंगारों को और बांध देती है लौंग की सुगंध में ... चंदन की बिंदी लगा कर सजा देती है।। यह प्रस्तुति भी बड़ी रसीली है .. हर एक श्रिंगार से वार्ता कर कर , रस भीगे युगल के रुचि बताते हैं .... लो अब नूपुर बाँध ... और नृत्य भर लो ... करकँज से श्रीमुख तक ..... लास्यमयी चरवन .... न न कर्षण .. मर्दन ... आलिंगन . अहा ... सुरती क्रीड़ा में निमग्न ... कभी गौर त कभी श्यामल रसरंगमंच में नृत्य करती , पिघलती ... फिसलती ... परिमालित अरुणिम रस वर्षण ... सखी री ... युगल भर रहे हैं करकमल में यह प्रवाही सुरीली सुरती तरल रंग को ... हो हो होरी ... होरी की रसिया अब यह पंक भर लिए हैं

पिय निरखन मधु पान

* पिय निरखन मधु पान * उम्मत प्रियतम के लोचन कमल कहीं   अनुराग रंजित रसातुर अधर कमल पंखुड़ी बन मधु पान तो नहीं कर   रही ... कंद की मिठास से लिपटे कर्पूर की शीतलता ओढ़े - लौंग इलाइची , पान के नवीन पत्तों से रंग चुराके ... लालिमा भर दे उन कम्पित अधरों पर .. पिय के रसीली भाव की रंगीली स्पंदन ... पिया के सुगंधित मधु रस संग मिले ... कनक श्यामल रस वपू पर चित्रावली अंकन करते करते ... लहरते बलखाते .. माँझ - खमाज छेड़ते ... कतरा कतरा रंग भर रहे हैं कण कण में ... वृंद रेणू रेणु पर .. अहा सखी ... निहार तो .. Shree Hit Matan

दोऊ मरालों की हंसध्वनि गगन मंडल रंगा दिया सखी जू....

प्रफुल्ल पियप्यारी फूल डोल पर बैठे , अंश को भुजलताओं से घेरे क्या बात कर रहे थे ... कौन जाने री ।अभी नयन हँस उठी , तभी ... तभी ... अरुण अधर लज्जा से सिमट गयी ... भीतर की पूलकन स्पंदन विटिका की रस को धकेल दिया ... प्रिया जू के पंखुड़ी से अर्क ,   सुगंध बिखेर रहा था कि लाल जू   उस सिंदूरी सुगंध को साँसो में भरे वेणु सेवा को रच श्रृंगारित जीवन दे दिए .. दोऊ मरालों की हंसध्वनि गगन मंडल रंगा दिया सखी जू .... हौले - हौले ... धीर - अधीरे पाऊँ रात्रि दस्तक दे रही ... सखियों ने निकुँज मंदिर को और सघन कर , सौरभ छिड़क सुख सेज को मादकता में गीले किए ... कोमल फूल बिछा दिए .. यह कहके की सखी — उन फूलनी दोऊ को विश्राम प्रदान करना .. थिरकना मचलना ना ना ... ललित जोड़ी अब विराजे सखी जू ... हिय निकुँज में ... रमणीय रूप छटा वर्णन ना कर पाऊँ री चार तृषित नयनों की एक पिपासा ... अनवरत पीने के पश्चात भी अतृप्त ... एक तृषा ... फिर आगे की अब कैसे कहूँ .. तनिक

फिर हिंडोला, झूला, प्रीति झौंटा..

अभी ग्रीष्म को ठौर न मिला हैं ... कब में इतनी तपूँ की दयाबश मेघ उमड़ घुमड़ बरस जाए .... फिर हिंडोला , झूला , प्रीति झौंटा .... बौछार रस का ... भीगी गीली श्रिंगार की नवीन चित्रावली ...   बस बस .. और ना कहो .. रजनी तो अभी खिली है .. कली से फूल .. सुगंध झराना है अब ... श्याम - गौर रति रस रंग अभिसार .. शीतल बूँदे ... झीलमिल जगमग टपकन .. सराबोर करने को आतुर ... केली क्रीड़ा आनंद   तो रंगीली रसीली चिकनी सौरभित पंक बन गयी री .... श्रीश्यामाश्याम श्रीश्यामाश्याम Shree Hit Matan

आजु तौ जुवति तेरौ वदन *आनंद* भरयौ

श्रीश्यामाश्याम .. श्रीवृन्दावन धाम आजु तौ जुवति तेरौ वदन * आनंद * भरयौ ..... अहा धीमी आवाज़ से , सखियाँ वार्ता कर रहे हैं आपस में ... अभी जगाना नहीं है। सुरत केली भीगी पौढाइ की   तीव्र लालसा सखी की हृदय में उछल रहा है ..... निशा अभी भी यौवना है ...   सम्मोहन की हुनर विकसित करने के अवसर आया है री ... सुवास कि मादकता अबाध स्त्रोतस्विनी जैसी निकुँज को घेर ली है ..... रूप रंगीली की वदन में आनंद उमड़ रहा है री .... निहारो न दो भुजवल्लरियों को ... अरुणिमा मिश्रित कनक प्रभा ... रोम रोम के पुलकन और   कूप से झरित रंगीली रस .... वोह हल्की सी थिरकन .... उँगलीयों के भाव भंगिमा .... आह .. जैसे नृत्य करते हुए ....   लालित्य भरे इन भुजलताएँ सब भेद खोल रही री ... अंग अंग रंग रस से भीगा , महका , चहका . चंचल ... क्या बखानूँ ?? आज तो नयन गढ़ी हुयी री ... कनक मृणाल वेष्टित नील कमल पर ...* आनंद भरयौ * री ... रति रस केली रंग भर रही है प्रिया जू की .... और प्रियतम ...