दोऊ मरालों की हंसध्वनि गगन मंडल रंगा दिया सखी जू....


प्रफुल्ल पियप्यारी फूल डोल पर बैठे, अंश को भुजलताओं से घेरे क्या बात कर रहे थे... कौन जाने री ।अभी नयन हँस उठी, तभी ... तभी ...अरुण अधर लज्जा से सिमट गयी... भीतर की पूलकन स्पंदन विटिका की रस को धकेल दिया... प्रिया जू के पंखुड़ी से अर्क,  सुगंध बिखेर रहा था कि लाल जू  उस सिंदूरी सुगंध को साँसो में भरे वेणु सेवा को रच श्रृंगारित जीवन दे दिए..
दोऊ मरालों की हंसध्वनि गगन मंडल रंगा दिया सखी जू....
हौले-हौले ...धीर-अधीरे पाऊँ रात्रि दस्तक दे रही ... सखियों ने निकुँज मंदिर को और सघन कर , सौरभ छिड़क सुख सेज को मादकता में गीले किए... कोमल फूल बिछा दिए.. यह कहके की सखीउन फूलनी दोऊ को विश्राम प्रदान करना.. थिरकना मचलना ना ना...
ललित जोड़ी अब विराजे सखी जू...
हिय निकुँज में... रमणीय रूप छटा वर्णन ना कर पाऊँ री चार तृषित नयनों की एक पिपासा... अनवरत पीने के पश्चात भी अतृप्त... एक तृषा ...फिर आगे की अब कैसे कहूँ..
तनिक झांक लो ...मेरे ह्रदय में और .. और कुछ तो बोलो... ...कोकिले सारिके ...

Shree Hit Matan



Comments

Popular posts from this blog

गुँथन

पिय निरखन मधु पान

रसीली विटिका