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पीक की रेख चित्रकला

* पीक की रेख चित्रकला * श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन हुलसित , विकसित , प्रफुल्लित फूल कुँज के देहरी छूने , पूर्व नभ के रक्तिम प्रकाश , धीरे धीरे अग्रसर। सखी ने यह देख , रस्ता रोक दि। वार्तालाप से समय बाँचने लगी। कोई अवसर न छूट जाए भीतर ... नवल किशोरी अभी नींद भरे नैनों को मुकुलित करने प्रयास कर , फिर मूँद लिए ... प्रियतम संग मधुर रती केली स्मृति को पुनः सजीव किए ... अहा ... सघन रस वपु में ... कम्पन .. स्पंदन .. सिहरन ... कपोल पर पिय के शीतल परस फिर से प्रकम्पित कर दी रूप रंगीली को ... अपलक नैनों से रूप रस पान करते गए .. का कहूँ उन नैनों की बात ... आसक्ति की प्यास ... तुस्टी की आनंद .. तृषा की लोभ एक और से तो ... जीत की उमंग .. समर्पण की आश्वस्ति .. लज्जा की शील .. पुष्टि कराने की संतुष्टि ... और क्या क्या .. प्रियतम अपने करकमल बढ़ाए उस ललित अनुरंजित पीक रेखा की ओर - जो कपोल से अधर पल्लव तक बिछ गया था ... मध्य में , प्रिया जू थाम