Posts

Showing posts from June, 2020

गुँथन

श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन गुँथन गुँथन .... अहा ... कुछ क्षण के लिए रोक लिए हमें ... कृपा कर अपने पास बिठा दिए ... स्वतः आँख विश्राम लिए श्रीआचार्यवर के चरण कमलों पर ..... फिर गुँथन की आहट एक अद्वुत सुगन्ध भर दिया .... सखीजन के भाव रस गुँथने लगी ... एक एक भाव की कोमल कली से माला गूँथा गया .. सखियों की अति सरस मधुर सेवा कली , एक माला में पिरोए दिए ... चटकने महकने ... तब ... पियवर दूल्हिनी को सजाएँगे ... और ... और प्रेयशी ... जब उसी बरमला की एक छोर प्रियतम को पहना देगी ... भाँति भाँति की पाश से क्रीड़ा सजती .. आज मालापाश .. और .. भीतर झांक लो सखी ... रस वपु गुँथन ... इठलाती ... बलखाती ... शरमाती ... अकुलाती ... आह ... जैसे   जैसे एकरस की उम्मत उत्ताल तरंग झूम रहें ... एक एक रस बिंदु के अर्चन हेत ... प्रगाढ़ आलिंगन , चुम्बन और क्या क्या रति कला .. कौन जाने ... बलिजाऊँ   री ... नवल नागर नागरी जोरी पर .... वृंद रेणु भी मधुर मधुर भीगी भीगी श्रिंगार .. झरन .. गलन से