आजु तौ जुवति तेरौ वदन *आनंद* भरयौ


श्रीश्यामाश्याम.. श्रीवृन्दावन धाम

आजु तौ जुवति तेरौ वदन *आनंद* भरयौ..... अहा धीमी आवाज़ से, सखियाँ वार्ता कर रहे हैं आपस में... अभी जगाना नहीं है। सुरत केली भीगी पौढाइ की  तीव्र लालसा सखी की हृदय में उछल रहा है.....निशा अभी भी यौवना है...  सम्मोहन की हुनर विकसित करने के अवसर आया है री...सुवास कि मादकता अबाध स्त्रोतस्विनी जैसी निकुँज को घेर ली है.....

रूप रंगीली की वदन में आनंद उमड़ रहा है री.... निहारो दो भुजवल्लरियों को... अरुणिमा मिश्रित कनक प्रभा ... रोम रोम के पुलकन और  कूप से झरित रंगीली रस.... वोह हल्की सी थिरकन.... उँगलीयों के भाव भंगिमा.... आह.. जैसे नृत्य करते हुए ....  लालित्य भरे इन भुजलताएँ सब भेद खोल रही री...
अंग अंग रंग रस से भीगा, महका, चहका. चंचल... क्या बखानूँ?? आज तो नयन गढ़ी हुयी री ... कनक मृणाल वेष्टित नील कमल पर...*आनंद भरयौ * री ... रति रस केली रंग भर रही है प्रिया जू की .... और प्रियतम... होली खेल रहे है... रति विलास विनोदिनी संग.... वसन्त के रंग हुलास कहाँ छोड़ पाएगा निकुँज की वीथियों को.....

श्रीवृन्दावन श्रीवृन्दावन
Shree Hit Matan

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